- Publisher : Setu Prakashan Pvt Ltd (19 January 2025)
- Paperback : 464 pages
- ISBN-10 : 9362017644
- ISBN-13 : 978-9362017642
- Item Weight : 180 g
- Dimensions : 20 x 13 x 4 cm
- Packer : Setu Prakashan Pvt Ltd
Prak Cinema By Arun Khopkar
सिने-निर्देशक, सिनेविद्, सिने अध्यापक, लेखक अरुण खोपकर की पुस्तक ‘प्राक्- सिनेमा’ उनकी कला-विचार त्रयी में से ‘अनुनाद’ और ‘कालकल्लोल’ के बाद की तीसरी कड़ी है। सिनेमा ने केवल सवा सौ साल की अपनी उम्र में मानव जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव डाला है। हजारों वर्षों की अवधि में विकसित होती चली गयी मानव की कलाओं और विज्ञान को अपने आप में समो लेने की शक्ति उसने हासिल की है। आदि मानव के बनाये गुफाचित्रों, जादूटोने, पाषाणशिल्पों, प्राचीन वास्तुओं, लोक कलाओं, धार्मिक विधियों, नृत्य, नाट्य, संगीत, साहित्य आदि के प्राचीन से आधुनिकोत्तर काल तक के प्रयोगों के सार-तत्त्व सिनेमा में उतरे हुए हैं। उन्हें आसान सी सुलझी हुई भाषा में उजागर करते हुए सिनेमा के इन अवतारों को आपस में जोड़ने वाली पुस्तक है’ प्राक्-सिनेमा’। फ़िल्म-निर्माण के अपने अनुभव और दुनिया भर की घुमक्कड़ी के दौरान अभिजात इमारतों, कलाकृतियों के किये संवेदनशील अवलोकन के चिन्तन के सम्पुट में जड़े जाने की वजह से इस कथ्य का रचना-विन्यास ठोस और तर्कसिद्ध बन गया है। चर्चित वास्तुओं और वस्तुओं में अजन्ता-घारापुरी की गुफाओं, दक्षिण भारत के मन्दिरों, मध्य एशियाई मस्जिदों, यूरोप के प्राचीन और आधुनिक गिरजाघरों और अत्याधुनिक दृक्-कलाओं के उदाहरण हैं। लेओनार्दों के साथ-साथ पर्शियन और मुग़ल मिनिएचर्स हैं। मातिस और पिकासो हैं। कथकली और भरतनाट्यम् के साथ-साथ अलग-अलग भाषाओं की साहित्य-कृतियों का विश्लेषण भी है। अभिजात सिनेमा के विकास में सभी कलाओं और शास्त्रों का जो सहयोग मिला है उसे यहाँ बड़ी नजाकत से पेश किया गया है। अरुण खोपकर की जीवन भर की खोजी प्रवृत्ति और समग्र विचार को लेकर उनके आग्रह की वजह से सिनेमा के पीछे खड़े सिनेमा के रहस्य को खोलकर पेश करने का उनका यह प्रयास सम्पन्न हुआ है। इस तरह की कोई पुस्तक भारतीय तो क्या विश्व साहित्य में भी अनन्य होगी। – चन्द्रकान्त पाटील





















