- Publisher : Kautilya Books (6 July 2025)
- Language : Hindi
- Paperback : 1280 pages
- ISBN-10 : 936063820X
- ISBN-13 : 978-9360638207
- Reading age : 15 years and up
- Item Weight : 3000 g
- Dimensions : 22 x 14 x 15 cm
- Country of Origin : India
Mansarovar Volume-1 to 8 by Munshi Premchand
मुंशी प्रेमचंद का नाम भारतीय साहित्य में एक ऐसी लौ की तरह है, जो न केवल अपनी रचनात्मकता से उजाला फैलाती है, बल्कि समाज के अंधकारमय कोनों को भी बेबाकी से उजागर करती है। जन्म से धनपत राय और साहित्य-जगत में 'प्रेमचंद' के नाम से प्रसिद्ध इस महान लेखक ने भारतीय समाज की परतों को जिस संवेदनशीलता, गहराई और सच्चाई से उकेरा, वह उन्हें अन्य लेखकों से अलग पहचान दिलाता है। बीसवीं शताब्दी के आरंभिक कालखंड में जब भारत गुलामी, गरीबी और सामाजिक कुरीतियों से जूझ रहा था, तब प्रेमचंद ने अपनी कलम को हथियार बनाया। वे केवल कहानियाँ नहीं लिखते थे- वे व्यवस्था से प्रश्न करते थे, अन्याय पर प्रहार करते थे, और उन लोगों को आवाज देते थे जिन्हें समाज ने मौन कर दिया था। चाहे वह जमींदारी शोषण हो या स्त्री की पीड़ा, धार्मिक पाखंड हो या जातिवाद की विभाजनकारी सोच-प्रेमचंद की रचनाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी अपने समय में थीं। उनकी भाषा सरल, सहज और आमजन की बोलचाल से निकली हुई होती है, जिससे पाठक तुरंत जुड़ाव महसूस करता है। गोदान, निर्मला, कर्मभूमि, प्रेमाश्रम, गबन जैसे उपन्यास और कफन, ईदगाह, नमक का दरोगा, पूस की रात जैसी कहानियाँ न केवल साहित्यिक कृतियाँ हैं, बल्कि भारतीय समाज का जीवंत दस्तावेज भी हैं। प्रेमचंद का साहित्य हमें यह समझने की प्रेरणा देता है कि बदलाव की शुरुआत संवेदना और समझ से होती है। वे लेखकों के लिए आदर्श हैं, पाठकों के लिए मार्गदर्शक, और समाज के लिए एक सच्चे चिंतक। उनका लेखन आज भी उन मूल्यों की याद दिलाता है जिन पर एक न्यायसंगत और समरस समाज की नींव रखी जा सकती है। यह पुस्तक मुंशी प्रेमचंद के साहित्य को नई पीढ़ी के सामने रखने का एक विनम्र प्रयास है- ताकि हम न केवल उनके शब्द पढ़ें, बल्कि उनके विचारों को आत्मसात करें।





















