- Publisher : Setu Prakashan Pvt Ltd (2 September 2025)
- Paperback : 190 pages
- ISBN-10 : 9362017008
- ISBN-13 : 978-9362017000
- Reading age : 13 years and up
- Item Weight : 180 g
- Dimensions : 19 x 13 x 2 cm
- Packer : Setu Prakashan Pvt Ltd
Lahooluhan Kashmir Aur Tadapti Kashmiriyat by Ram Puniyani
केन्द्र में गठबन्धन सरकारों का दौर था। शेख अब्दुल्ला की मृत्यु के बाद कश्मीर को एकजुट रखने वाला कोई सक्षम नेता भी मौजूद नहीं था। 1990-91 में आतंकवाद का खुला तांडव हुआ। । केन्द्र में वीपी सिंह की सरकार थी जिसे भाजपा का समर्थन प्राप्त था। जगमोहन कश्मीर के राज्यपाल बने। इसी समय आतंकवादियों ने कश्मीरी पण्डितों पर हमला किया। जगमोहन के रहते हुए कश्मीरी पण्डितों को कश्मीर से पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा। यही जगमोहन बाद में भाजपा में शामिल होकर अटल बिहारी वाजपेई की सरकार में मन्त्री बने। कश्मीरी पण्डितों के पलायन का भाजपा ने जमकर दुष्प्रचार किया। कश्मीरी पण्डितों के पलायन का ठीकरा काँग्रेस के सिर फोड़ा जबकि उस समय ना केन्द्र और ना ही कश्मीर में काँग्रेस का शासन था। आरएसएस की प्रोपोगेंडा मशीनरी की यही ताकत है। कौन कहता है कि झूठ के पाँव नहीं होते! दुनिया में झूठ का सबसे बड़ा तन्त्र आरएसएस के पास है। लेकिन काँग्रेस इस झूठ को बेपर्दा करने में नाकाम रही। इसका फायदा भाजपा को मिला। कश्मीर और मुसलमानों के खिलाफ नफरत पैदा करके भाजपा ने हिन्दू बहुसंख्यकवाद की राजनीति को मजबूत किया। इसके जरिए आरएसएस और भाजपा हिन्दू सवर्ण जातियों को गोलबन्द करने में कामयाब हो गये। कभी काँग्रेस का आधार रहा उत्तर भारतीय ब्राह्मण, कश्मीरी पण्डितों के मुद्दे पर भाजपा के साथ चला गया। – भूमिका से





















