- Publisher : Setu Prakashan Pvt Ltd (11 February 2025)
- Paperback : 167 pages
- ISBN-10 : 9362017385
- ISBN-13 : 978-9362017383
- Item Weight : 180 g
- Dimensions : 20 x 12 x 2 cm
- Packer : Setu Prakashan Pvt Ltd
Jis Lahore Nai Dekhya O Jamyai Nai By Mrityunjay Prabhakar
असगर वजाहत कहानी, उपन्यास, आत्मकथा, यात्रा-संस्मरण, नाटक आदि अनेक विधाओं में एकसाथ सक्रिय हैं। उनके नाटकों ने शुरू से हिन्दी पाठकों व दर्शकों का ध्यान खींचा है। उनके नाटकों में जो एक बात सामान्य है, वह है उनमें निहित व्यंग्य, विडम्बना और विद्रूरूपता। नाटकों का कथानक भी इन्हीं के इर्द-गिर्द रचा गया है। नाटक ‘जिस लाहौर नइ देख्या…’ का ताना-बाना भी कुछ इसी तरह बुना गया है। पूरा नाटक यथार्थवादी है, लेकिन प्रारम्भिक दृश्य में ही व्यंग्य-विडम्बना-विद्रूरूपता से साक्षात्कार होता है। मण्टो के यहाँ भी भारत-पाक विभाजन के ऐसे ही तिलमिलाते नज़ारे मिलते हैं! विभाजन अब भी कई लोगों के लिए एक गुत्थी ही है। इतिहास में इसकी गहरी और विस्तृत छान-बीन है। साम्राज्यवादी मंसूबों से इंसानियत की तबाही तो एक जाना-माना तथ्य है, लेकिन मनुष्य का एक-दूसरे के ही ख़िलाफ़ नफ़रत, पागलपन कई बार एक अनसुलझी गुत्थी ही लगती है। इंसानियत ही जैसे खुद अपने सामने यह सवाल रखती है कि क्या एक धरती के कई टुकड़े किये जा सकते हैं? क्या कई टुकड़ों में बँटी धरती के बाशिन्दों की फ़ितरत भी बँट जाती है ? – इसी पुस्तक से





















