- Publisher : Setu Prakashan Pvt Ltd; First Edition (19 September 2024)
- Paperback : 216 pages
- ISBN-10 : 936201825X
- ISBN-13 : 978-9362018250
- Item Weight : 208 g
- Dimensions : 20 x 13 x 2 cm
…Hajir Ho : Adhunik Nyayik Dayre Mein Ramayana Ki Punaryatra
यह किताब प्रयोग और मौलिकता के पैमाने पर बहुत उच्चस्तर पर दिखाई देती है। मेरी जानकारी में किसी भी व्यक्ति ने इससे पहले प्राचीन काल के नायकों या पात्रों को आधुनिक जगत् के आपराधिक कानूनों की कसौटी पर नहीं परखा है। इसमें अहिल्या और मन्थरा जैसे पात्रों का चयन किया गया है, जिनके नाम हर बच्चे और आम आदमी की जुबान पर हैं। उनके लिए वास्तविक जीवन की कल्पना भी जीवन्त की गयी है। भारतीय दण्ड संहिता (इसका नाम 01 जुलाई 2024 से भारतीय न्याय संहिता कर दिया गया है)- की धाराओं का शायद इस पुस्तक में बहुत महत्त्व नहीं है, हालाँकि कुछ लोग इस बिन्दु पर मुझसे असहमति जता सकते हैं। मेरे विचार में सबसे ज्यादा महत्त्व विभिन्न प्रकार के मूल्यवान निर्णयों का है, जिन्हें लेखक ने प्रत्येक पात्र के चरित्र को गढ़ने के लिए कुशलता से बाँधा है। इन पात्रों को पूरी तरह मानवीय दिखाया गया है। यही दोनों महाकाव्यों-रामायण और महाभारत का केन्द्र बिन्दु है कि भले ही ये हमारे आदर्शों की कमियों को पूरी तरह ढकते नहीं हैं, लेकिन नैतिक, राजनीतिक और सामाजिक सन्देश जरूर देते हैं। व्यक्तिपरकता के माध्यम से इस प्रकार के मूल्यवान निर्णय तैयार करने में लेखक बोर नहीं हुआ है। उदाहरण के लिए, मन्थरा को अपना धर्म निभाने के लिए प्रशंसा हासिल हो सकती है, भले ही इसका परिणाम बुराई था। उसकी निष्ठा कभी नहीं डगमगायी और लक्ष्य कभी आँखों से दूर नहीं हुआ। इसी तरह, रावण भी असाधारण योग्यताओं का स्वामी था। मृत्युकारक दोषों के साथ इन योग्यताओं ने उसके जीवन को ‘ग्रे’ बना दिया था, न ज्यादा खराब और न ज्यादा अच्छा। मेरा धर्म, जैन धर्म है, जिसने समय और दूरी के आपसी सम्बन्ध के बारे में सबसे पहले बताया और यही सम्बन्ध वास्तविक दुनिया की चीज है और वास्तविक कहानियों को सामने लाता है; व्यावहारिक ज्ञान के बिना सुनाई जाने वाली कहानियों के विपरीत ! विवाह और आधुनिक कानून की कमियाँ, प्राचीन पौराणिक व्यक्तित्व और प्रतिदिन होने वाली गम्भीर भूलें हमारे कानून की कमी के बारे में बताने वाले कुछ बिन्दु हैं। ऐसी कमियाँ कि यह कानून असली अपराधी को नहीं ढूँढ़ पाता और सजा का निपटारा प्रभावशाली तरीके से करता है। क्या शूर्पणखा, उसपर आरोप लगाने वालों से अधिक दोषी थी ? क्या सीता पर मुकदमा वाकई समाज पर मुकदमा चलाने के बराबर है? भले ही इन प्रश्नों को कभी खुलकर नहीं पूछा गया, लेकिन पुस्तक में कहीं न कहीं इशारे में मिल जाते हैं; सतह के नीचे बमुश्किल दबे हुए, पाठकों को लगातार गुदगुदाते और कष्ट देते हुए। -प्रस्तावना से





















