- Publisher : Setu Prakashan Pvt Ltd; First Edition (19 September 2024)
- Paperback : 304 pages
- ISBN-10 : 9362017393
- ISBN-13 : 978-9362017390
- Item Weight : 284 g
- Dimensions : 20 x 13 x 2 cm
Durgawati : Garha Ki Parakrami Rani by Rajgopal Singh Verma
दुर्गावती - गढ़ा की पराक्रमी रानी – राजगोपाल सिंह वर्मा कोई ग़लती याद न आए तब भी। दरअसल, अपराध बोध होता है, अपने जीवित रह जाने का। और उसका कोई प्रतिकार है नहीं। न केवल गोंड राजवंश के इतिहास में बल्कि समकालीन इतिहास में जितनी कीर्ति दुर्गावती ने अर्जित की उतनी शायद ही किसी शासक ने की हो। संग्राम शाह और फिर दुर्गावती के शासनकाल में ही गोंड सत्ता की जड़ें इतनी गहरी हो गयी थीं कि आगामी दो सौ साल की पतनावस्था में भी राज्य का अस्तित्व बना रहा। यह गढ़ा-कटंगा राज्य की जीवनीशक्ति का प्रमाण है। अकबर की सेना के आक्रमण और दुर्गावती के शौर्य की कहानी जनमानस में इस तरह अंकित हुई कि उसकी याद शताब्दियों के बाद तक अक्षुण्ण है। लोक गीतों में सजकर आज भी उसकी स्मृति सुदूर अंचलों के लोगों के मन में जीवित है। इस पुस्तक को जीवनीपरक उपन्यास का रूप अवश्य दिया गया है, पर इतिहास के उन्हीं तथ्यों, स्थलों और तिथियों को मान्यता दी गयी है, जो शोधकर्ताओं ने हमारे सामने रखे हैं। यह पुस्तक उपन्यास रूप में है ताकि पाठकों को उस कालखण्ड की राजनीति, युद्ध और रानी के कृतित्व को समझने में सुगमता रहे। इसके बावजूद यह ध्यान रखा गया है कि घटनाओं, ऐतिहासिक तथ्यों और व्यक्तियों की बाबत प्रामाणिकता बनी रहे। आवश्यकतानुसार किये गये इस औपन्यासिक रूपान्तरण में कतिपय स्थानों पर काल्पनिकता का पुट दिया गया है, पर प्रयास किया गया है कि उससे इस वीरांगना तथा तत्कालीन परिस्थितियों की ऐतिहासिकता अक्षुण्ण बनी रहे। साथ ही एक प्रयोग और भी किया गया है। रानी दुर्गावती के युद्ध मैदान में आत्मघात के बाद उपन्यास अवश्य खत्म हुआ है, लेकिन गढ़ा साम्राज्य की इस नायिका द्वारा पल्लवित यह साम्राज्य बाद के सैकड़ों वर्षों तक अक्षुण्ण रहा, कभी थोड़ा निर्बल हुआ, तो फिर उभरकर शक्तिशाली बना। इस परिवर्तन और विवरण के ऐतिहासिक पक्ष को पुस्तक के दूसरे भाग में सामने लाया गया है। इसके लिए प्रोफेसर सुरेश मिश्र के शोध को आधार माना गया है।





















