- Publisher : Setu Prakashan (31 August 2025)
- Paperback : 1161 pages
- ISBN-10 : 936201999X
- ISBN-13 : 978-9362019998
- Item Weight : 480 g
- Dimensions : 28 x 23 x 6 cm
- Packer : Setu Prakashan
Marxwadi Chintan Shabdkosh by Translated by Kamal Nayan Chaubey
मार्क्सवादी चिन्तन शब्दकोश सम्पादक – टॉम बॉटोमोर, लॉरेंस हैरिस, वी.जी. किरनन, रॉल्फ मिलिबैण्ड अनुवादक – कमल नयन चौबे भारत में मार्क्सवाद को लेकर अलग-अलग तरह की विरोधाभासी समझ मौजूद है: बहुत सारे ऐसे डिग्रीधारक युवा या प्रौढ़ मिल जाएँगे, जो मौजूदा व्यवस्था के प्रति आलोचनात्मक भाव रखने वाले सभी लोगों को ‘मार्क्सवादी’, ‘कम्युनिस्ट’ या ‘नक्सल’ की संज्ञा देते हैं। ऐसे लोगों को मार्क्सवाद के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है। ये मार्क्सवाद के बारे में बनी बनायी धारणाओं पर गहरा विश्वास करते हैं। विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त या यहाँ अध्यापन करने वाले बहुत से ऐसे लोग यह कहते हैं कि मार्क्सवाद एक ऐसा विचार है जो धर्म के खिलाफ है, परिवार के खिलाफ है, और हिंसा को बढ़ावा देता है। दूसरे स्तर पर, बुद्धिजीवियों का ऐसा तबका है जो मार्क्सवाद को एक ‘विदेशी’ विचार मानते हुए इसकी निन्दा करता है। इनके द्वारा भारतीय ज्ञान परम्परा की बात कही जाती है। इन बौद्धिकों में से बहुतों के पास मार्क्सवाद के बारे में कोई गहरी समझ नहीं होती है। असल में, ऐसे विद्वान् भूल जाते हैं कि विचारों की राष्ट्रीय सीमा नहीं होती है, और ऐसी कोई सीमा नहीं बनायी जानी चाहिए। भारत में भी मार्क्सवाद को आधार मानकर गहन चिन्तन हुआ है, और वह मार्क्सवादी चिन्तन में भारतीय चिन्तन का योगदान है। इसके अतिरिक्त, किसी विचार को आलोचनात्मक नजरिये से देखने के लिए भी उसके बारे में एक व्यवस्थित समझ होनी चाहिए। इसके लिए यह जरूरी है कि लोग मार्क्सवाद के बारे में समझ अवश्य बनायें। तीसरे स्तर पर, मार्क्सवादी पार्टियों से जुड़े ऐसे बुद्धिजीवी और कार्यकर्ता हैं जो मार्क्स और मार्क्सवाद की अपनी व्याख्या को ही सबसे सटीक और सही मानते हैं। अपनी व्याख्या के अतिरिक्त ये अन्य सभी व्याख्याओं को भ्रामक और गलत समझ के रूप में प्रस्तुत करते हैं। यह प्रवृत्ति भी ऐसे लोगों को मार्क्सवाद की अन्य धाराओं के बारे में सही ज्ञान हासिल करने से रोकती है। — अनुवादक की कलम से





















